लेखनी कविता-03-Feb-2023

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मैं कली बन खिल आई, अपने बाबुल के अंगना। मेरी किलकारी से महकी, बाबुल की बगिया।। कली से अब फूल बनी, भौरों के पंख फड़फड़ाए। रसास्वादन हेतु गली, मोहल्ले में मंडराए।।  ...

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