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सहज सुहृद गुर स्वामि सिख, जो न करइ सिर मानि सो पछिताइ अघाइ उर, अवसि होइ हित हानि।। अर्थ— तुलसीदासजी कहते हैं कि स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी ...