सूरदास जी के पद

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कबहुं बोलत तात खीझत जात माखन खात अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥ कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥ कबहुं ...

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