सूरदास जी के पद

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बूझत स्याम कौन तू गोरी कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥ काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत ...

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