सूरदास जी के पद

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अंखियां हरि-दरसन की प्यासी देख्यौ चाहति कमलनैन कौ¸ निसि-दिन रहति उदासी।। आए ऊधै फिरि गए आंगन¸ डारि गए गर फांसी केसरि तिलक मोतिन की माला¸ वृन्दावन के बासी।। काहू के मन ...

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