सूरदास जी के पद

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ऊधौ मन न भए दस-बीस एक हुतो सो गयो स्याम संग को अवराधै ईस॥ इंद्री सिथिल भई केसव बिनु ज्यों देही बिनु सीस आसा लागि रहत तन स्वासा जीवहिं कोटि बरीस॥ ...

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