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शीर्षक-प्रकृति भी रचे रचना प्रकृति पहन पीत गहना,कुसुमकाल की बहना। सभी फसल अब लहरें,सभी जगह है पहरे। लगे पत्र अब झरने,लगे आज मन हरने। धरत्रि लगे खिलने,प्रकृति भूमि लगे मिलने। प्रकृति ...