शहरी जीवन (कविता)

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रूखा सूखा खाते थे और  रहते थे कच्चे मकानों में भले  पर घर और  रिस्ते होते थे पक्के सुख दुःख में देते थे साथ याद बहुत आता है गाँव वो गाँव ...

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