मैं थोड़ा सा ठहरा हुआ था क्या जो समुन्दर कभी किनारा बन गया हर शाम को खिलने वाला वो चांद चंद गलियों का कैसे आवारा बन गया। वो पूछेगा तुझसे अगर ...

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