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अध्याय १३ दोहा - वरु नर जीवै मुहूर्त भर , करिके शुचि सत्कर्म । नहिं भरि कल्पहु लोक दुहुँ , करत विरोध अधर्म ॥१॥ मनुष्य यदि उज्वल कर्म ...