लेखनी ग़ज़ल -20-Feb-2023

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पागल हूँ घटिया हूँ सबका मैं ही हूँ दोषी जुर्म ए इश्क़ करके खुद में ही रहा पोशी अब इश्क रहा कहाँ है रूह का सदका चादर है चीख है और ...

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