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सांझ है नित्य...अटल है शाश्वत ... गोधूलि वेला! हाय! कवि मन अकेला! निहार लालिमा अनुपम को, स्मृति प्रियतम में खोती है। जहां आफताब की किरणें सोती है। हाय! शाम तेरा रूप ...