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मुक्तक याद आती हैं बचपन की वो शरारतें खिलंदड़ जिंदगी और बेपरवाह आदतें ना कोई गम ना उदासी ना कोई चिंता थी आंखों में रंगीन सपने आसमां छूने की बातें पैरों ...