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श्लोक ४६ ते ५० तुम्हारे बरसनेपर बाफ़ निकलती हुई भूमिकी गन्धसे रमणीय , सूं डोके छिद्रोसे साँय - साँयकी सुन्दर ध्वनि करते हुए हाथी जिसका उपभोग कर रहे ऐसा , ...