अधूरा इन्तिज़ार

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1st  शाम के पांच बज रहे थे.  साहिबा मोबाइल फ़ोन लिए छत का ऊपर खड़ी थी.  शायद किसी के काल का इन्तिज़ार कर रही थी.  वो बार बार अपने फ़ोन को ...

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