बोलो न फिर क्या आएंगे?

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ज़िस्म की चीखों में जब आहें भी दब जाएंगी कानों तक फिर कहाँ आवाज़ें तब आएंगी ढूंढेगा हर लम्हा फिर ऐसे ही हर लम्हें को एक ही मंज़िल पर फिर राहें ...

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