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मुझे जमींदार समझकर यदि कोई मिलने आता तो मैं भीतर-ही-भीतर जैसे लज्जित होता था वैसे ही झुँझला भी उठता था। खासकर ये लोग ऐसी-ऐसी प्रार्थनाएँ और शिकायतें लाया करते हैं, और ...