काव्य संग्रह - भाग 13

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रे मन-प्रति-स्वाँस पुकार यही रे मन-प्रति-स्वाँस पुकार यही, जय राम हरे! घनश्याम हरे! तन-नौकाकी पतवार यही, जय राम हरे घनश्याम हरे॥१॥ जगमें व्यापक आधर यही, जगमें लेता अवतार वही। है निराकार-साकर ...

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