काव्य संग्रह - भाग 17

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भजता क्यूँ ना रे हरिन भजता क्यूँ ना रे हरिनाम,तेरी कौड़ी लगे न छिदाम॥टेर॥ दाँत दिया है मुखड़ेकी शोभा, जीभ दई रट नाम॥१॥ नैणा दिया है दरशण करबा, कान दिया सुण ...

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