काव्य संग्रह - भाग 48

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मैं गिरधर के घर जाऊं मैं गिरधर के घर जाऊं। गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं॥ रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उठि आऊं। रैन दिना वाके संग खेलूं ...

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