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पर मेरे मन में नहीं है। मैं निष्पाप निष्कलंक हूँ।” “हाँ, युधिष्ठिर!” कमललता भी हँसी, किन्तु उसके बोलने की भंगिमा पर। वह शायद ठीक-ठीक कुछ समझ न सकी, सिर्फ उलझन में ...