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तीव्र जलती है तृषा अब भीम विक्रम और उद्यम भूल अपना , श्वास लेता बार बार विश्राम शमदम खोल मुख निज जीभ लटका अग्रकेसरचलित केशरि पास के गज भी न उठ ...