रसखान रत्नावली (सवैया -128)

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प्‍यारी पै जाइ कितौ परि पाइ पची  समझाइ सखी की सौं बेना।  बारक नंदकिशोर की ओर कह्यौ  दृग छोर की कोर करै ना।  ह्वै निकस्‍यौ रसखान कहू उत  डीठ पर्यौ पियरौं ...

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