रसखान रत्नावली (सवैया -130)

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खेलै अलीजन के गन मैं उत  प्रीतम प्‍यारे सों नेह नवीनो।  बैननि बोघ करै इत कौं उत  सैननि मोहन को मन लीनो। नैनति की चलिबी कछु जानि  सखी रसखानि चितैवे कौं ...

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