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बागन का को जाओ पिया, बैठी ही बाग लगाभ दिखाऊँ। एड़ी अनाकर सी मौरि रही, बरियाँ दोउ चंपे की डार नवाऊँ। छातनि मैं रस के निबुआ अरु घूँघट खोलि कै दाख ...