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धूप – दोहे धूप विरह की है कड़ी, मिलना छांह समान। कान्हा भी बिन बांसुरी, कैसे छेड़ें तान।। सफर धूप का है कठिन, कर लीजे आराम। मंजिल भी मिल जायेगी, मन ...