कुछ फर्क नहीं रहा....

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कुछ फर्क नहीं रहा मूर्ती और इंसानों मे... कुछ फर्क नहीं रहा... हक़ीक़त और अफसानो मे... मूर्ति खामोश है.... इंसान बोल नहीं रहे.... हक़ीक़त छिप रही है... अफसानों मे वो ज़ोर ...

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