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ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया मुझ को सुपुर्द-ए-गर्दिश-ए-अय्याम कर दिया साक़ी सियाह-ख़ाना-ए-हस्ती में देखना रौशन चराग़ किस ने सर-ए-शाम कर दिया पहले मिरे ख़ुलूस को देते रहे ...