जय शंकर प्रसाद की श्रेष्ट कहानिया

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सामाजिक यथार्थ और आदर्श यथार्थ के इस अन्तर पर टिप्पणी करते हुए स्वयं प्रसादजी ने कहा है , " यथार्थवाद क्षुद्रों का ही नहीं , अपितु महानों का भी है। " ...

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