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मैं लब हूँ तुम मेरी बात हो, मैं दिन हूँ तुम हंसीं रात हो। वो ग़ज़ल मुक़म्मल समझो, जिसके तुम नग़्मात हो। मैं कोई बाज़ी शतरंज की, और तुम शय-मात हो। ...