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शीर्षक : उलझे मानव मन नभ से नीले विस्तृत मन पर लिखी हैं कितनी परिभाषाएँ... आड़ी तिरछी रेखाएं हैं इसकी समेटे अनगिनत भाव आशाएँ! रची कलम की कूची से जो रंग ...