बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 50)

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(15) कातिक की चाँदनी छिटक रही थी।  गुलाबी जाड़ा पड़ रहा था।  सवन-जाति की चिड़ियाँ कहीं से उड़कर जाड़े भर इमली की फुनगी पर बसेरा लेने लगी थीं; उनका कलरव उठ ...

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