1 Part
320 times read
12 Liked
सखि, ये मन शैतान बड़ा है चंचल पवन के जैसे ये मन निर्मुक्त सा गगन में उड़ा है सखि, ये मन शैतान बड़ा है इक पल भी कहीं ठहर न पाये ...