आरजू नाफ़रमानियों के दौर अभी ख़तम न होंगे। गुस्ताखीयों के सिलसिले अभी और चलेंगे। जो कहते हैं बुझ गया है शोला मेरे दिल का। हाथ जल गए तो इल्ज़ाम क्या मुझ ...

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