23 Part
35 times read
0 Liked
वह किसी भी तरह मन को बाँध न पाती। छत पर अकेली घूमने जाती। अपराह्न का प्रकाश धूसर हो आता। शहर के ऊँचे नीचे नाना आकारों के घरों की चूड़ाएँ पार ...