फिर भी उदार बनते हो 18-May-2023

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    कविता - फिर भी उदार बनते हो  मानवता को बांट कर तालमेल  काट कर, इंसानियत में जाति का  जहर घोल कर, भगवान को  बांट कर  धर्म का ठेकेदार बनते हो, साहब! ...

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