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स्वैच्छिक कविता सूर्य उपासना सूरज तपता नित रहे,धरती थामें हाथ । बादल जल बरसा रहा,पवन देव हैं साथ ।। कण-कण में जीवन बसा, मानव लेना जान। चार देव प्रत्यक्ष मिल, देते ...