ग्रह कुटुंब

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वह था क्या की अंतः मन में, विकट जाल बिखरा है, ओशो से भीनी मिट्टी में, विपट कपोल खिला है, बैठा हु मै भी कब से,  सुअवसर को यू ताके, सत्ता ...

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