न्याय की पुकार

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तड़पते हुए पुकारती रही पर बेरहमों ने सुनी एक नहीं हे ईश्वर, क्या नारी तन है बस भोग का साधन मानव रूप में कुछ दरिंदे करते आहत तन संग अंतर्मन क्या ...

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