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लब तबस्सुम नज़र हया उफ़्फ़ ये सादगी, तेरे हुस्न-ओ-ज़माल को जचती है नाराज़गी। उल्फ़त के तीर क़ातिल नज़रों से चलाती हो! कहाँ से आ गई तुम में इतनी आज़ादगी। आते जाते ...