ये सब सही प हो न हो ये बिजलियाँ गिरीं कहीं ( ग़ज़ल)

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लगा  दी  आग  निगाहों ने बर्गे - गुल   में   ही    कहीं,  हरी - भरी   न   हो   सकी दिलों   की  सरजमी कहीं।  कहाँ   ये    दौरे -  आसमां कहाँ   ये   नज़्में ...

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