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भोर की लाली दिनकर ने रजनी का घूंघट खोला, धीरे-धीरे मुस्कुरा कर यूं बोला। आ गया देखो प्रियतम तुमसे मिलने, उठो जागो सवेरा हो गया। निर्मल पावन बयार बह रही, ...