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दो अनजानों की आंखमिचौली में, हम वो रात गुज़ार रहे थे। वो बैठी थी पर्दानशी, और हम दर्पण में, उसे निहार रहे थे गुस्से में भी वो चेहरा, क्या कहूं कितना ...