राहत साहब के लहज़े में एक शायरी

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उँगलियाँ यूँ ना सब पर उठाया करो, दाग़ हमारे हैं तो हमीं पर लगाया करो, क्यों जाते हो दूसरों की बारिशों में भीगने को, इश्क़ की बौछारें कभी हमपर भी बरसाया ...

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