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शीर्षक-कुम्हार माटी की मूरत ,गढ़ता सूरत, कहलाता कुम्हार। कर से सहलाता, उसे पकाता, देता है आकार।। रंगों से सजता, रूप निखरता, बसे हृदय संसार। नव रूप बनाता, उसे सजाता, फिर लाता ...