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शीर्षक- आघात आघात हृदय पर होता है, जब देखूँ मैं रोती नारी। टूटी मर्यादा की रेखा, उन्मुक्त हुए हैं व्यभिचारी।। बलवत तन को हासिल करना, कब पौरुष कहलाता है। जो ...