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ले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक धीरे-धीरे द्रवित हुआ मन देख दुखारे पड़ा रहूँ मै कहीं किनारे जहाँ नीरवता बात करती निर्भीकता कभी ना डरती डाले हवा गले मे घेरे ...