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....प्रतियोगितार्थ.... *मतलबी लोग* उम्र की दोपहरी तक, रिश्ते बहुत गहरे बने। शहद में घुले शब्द का, धीमा ज़हर हम पीते रहे। थे दिन लबरेज़ खुशियों से,भीड़ से घिरे रहे ...