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दैनिक प्रतियोगिता हेतु गमों से भरे हैं मुशीबत के मारे। बहुत ही डरे हैं मुशीबत के मारे।। कोई देखता ही नहीं उनकी जानिब। जो बेआसरे हैं मुशीबत के मारे।। जमाने की ...