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भारत की दुर्दशा अविरत चपल है कालचक्र, नित चलता रहे निशिवासर। अम्बर दिग के दृग देखे है, नही भूले वो शशि प्रभाकर। चारु चमक चंचल चितवन, कंचन भूषण सज्जित थी। अखिल ...